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Gadhethad - Gaytri Ashram II गायत्रीके उपासकोके लिए बहुत अच्छा स्थान II गधेथड

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Gaytri Ashram - Gadhethad राजकोटसे १२२ किलोमीटर की दुरी और उपलेटासे ७ किलोमीटरकी दुरी पर वेणु डेमके किनारे गायत्रीमाता का अद्भुत आश्रम है,जिसका नाम गधेथड है. लोगोकी श्रधा और आस्था का प्रतिक है मंदिर के महंत लालदासबापू गायत्रीमाता के परम भकत है.बापू इसे पहले बापू नागवदर गाँवमें थे, बापू को नागवदरसे यहाँ गधेथड आये १९ साल जितना समय हुआ है. इस समयमें बापूने सुन्दर मंदिर का निर्माण किया है और गधेथडको एक यात्राधामके रूपमें विकसित किया है. माता गायत्रीके उपासकोके लिए बहुत अच्छा स्थान है लालदासबापूको बचपनसे ही गायत्रीमाता के लिए श्रधा और आस्था होनेसे १४ सालकी उम्रमें ही वैराग्य प्राप्त हो गया था. इस उममें, उन्होंने अपनी आयका आधा हिस्सा माताजीके काममें इस्तेमाल किया. ग्रामीणकी मददसे उन्होंने नागवदरकी सीमा पर गायत्रीमाता का छोटासा मंदिर बनाया. संत श्री लालदासबापू को गधेथड आये २० साल जितना समय हो गया है. यहाँ वेणु-२ डेम के किनारे एक भव्य आश्रमका निर्माण किया है. यहाँ बापू २१ महीने तक एकांत में रहकर गायत्रीमाता के अनुष्ठान करते रहते है. इसलिए बापूके दर्शन लोगोको कम होते है बापू ज़यादातर अन

१०० सालकी आयु के काश्मीरी बापू का आश्रम – जूनागढ़ II Kashmiri Bapu Ashram - Junagadh

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गिरनारकी तलेटीमें   भवनाथ महादेवसे २ किलोमीटरकी दुरी पर गीरके   जंगलके क्षेत्रमै काश्मीरीबापूने आजसे तक़रीबन १०० सालसे ये आश्रम बनाया है और यहाँ पर दातारेश्वर महादेव की स्थापनाकी है बापूकी आयु कितनी है ये किसीको मालूम नहीं है पर बापु के मुख पर इतना तेज है जेसा किसी २० के २५ साल के नोजवान के मुख पर होता है ' एक बार मुझे अचानक कश्मीरीबापू के दर्शन की इच्छा प्रकट हुई राजकोटसे सुबहकी ८;०० बजेकी लोकल ट्रेनमें बेठ गया इतवारका दिन था ट्रेनमें थोड़ी भीड़ थी करीबन १०:३० बजे जूनागढ़ प्लेटफार्मपे ट्रेन रुकी, में प्लेटफार्मसे बहार निकला तो बहार ऑटोवाले सबको कह रहे थे चलो तलेटी, मजेवदी गेट, मुझे मालूम था तलेटी के पासमें कश्मीरीबापू का आश्रम है. तलेटीमें ऑटोसे निचे उतरा और पहले भवनाथ महादेव (जिसके कहानी आगे लिखेंगे) के दर्शन किये वहा से दक्षिणकी और २ किलोमीटर पैदल रास्ता है वेसे आश्रमकी गाडियोंको यहाँसे जाने की अनुमति है मगर लोगो को पैदल जाना पड़ता है रास्तेमें जाम्बुनके पैडसे जाम्बुन निचे गिरे हुए थे तो छोटे छोटे बच्चे उसे खा रहे थे  पैदलजाने का रास्ता १.५ से २ किलोमीटर है इसिलिये यात्रालू

Dan Gigev Ashram - Chalala II संत दाना भगत - चलाला

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संत दाना भगत : गायों के द्वारा सिद्धि प्राप्त करते हैं Dan Gigev Ashram - Chalala सौराष्ट्र संत शूरों की भूमि है। सौराष्ट्र के कई ऋषि संतों में संत शिरोमणि आपा दाना शामिल हैं। सौराष्ट्र के सभी ऋषियों का एक ही मंत्र रहा है: टुकड़ो त्या हरी ढुकडॉ  आपा दाना भी इस मंत्र प्रेरित थे। आपा दाना का गायों के प्रति विशेष आकर्षण था  गायों की देखभाल और सेवा उनका मुख्य उद्देश्य था । आपा दानाने कई चमत्कार प्रदान किए हैं, इतिहास इसका गवाह है। काठी क्षत्रिय जाति में कई संत हुए हैं आपा दाना उसमें प्रमुख हैं। चलाला एक छोटा शहर अमरेली से लगभग 25 किमी दूर स्थित है। जहाँ आपा दाना आश्रम है जहाँ आपा दानाने वर्षों तक गायों की सेवा की, विकलांगों, भिक्षुओं और पालतू जानवरों के लिए भोजन उपलब्ध कराया। आज भी, ये सभी सेवाएं महंत वल्कबापू के संरक्षण में जारी हैं । आपा दाना का जन्म 1784 में वर्तमान जसदन तालुका के आनंदपर (भाड़ला) गाँव में हुआ था। आपा दाना जन्म से ही नेत्रहीन थे काठी क्षत्रिय जाति में आपा जादरा नाम के एक और संत हुए। सभी पीड़ित, अंधे, वंजिया, जिन्हें आपा जादरा हिंदवा पीर के रूप में