Dan Gigev Ashram - Chalala II संत दाना भगत - चलाला

संत दाना भगत : गायों के द्वारा सिद्धि प्राप्त करते हैं

Dan Gigev Ashram - Chalala
सौराष्ट्र संत शूरों की भूमि है। सौराष्ट्र के कई ऋषि संतों में संत शिरोमणि आपा दाना शामिल हैं। सौराष्ट्र के सभी ऋषियों का एक ही मंत्र रहा है:
टुकड़ो त्या हरी ढुकडॉ
 आपा दाना भी इस मंत्र प्रेरित थे। आपा दाना का गायों के प्रति विशेष आकर्षण था गायों की देखभाल और सेवा उनका मुख्य उद्देश्य था । आपा दानाने कई चमत्कार प्रदान किए हैं, इतिहास इसका गवाह है। काठी क्षत्रिय जाति में कई संत हुए हैं आपा दाना उसमें प्रमुख हैं।

चलाला एक छोटा शहर अमरेली से लगभग 25 किमी दूर स्थित है। जहाँ आपा दाना आश्रम है जहाँ आपा दानाने वर्षों तक गायों की सेवा की, विकलांगों, भिक्षुओं और पालतू जानवरों के लिए भोजन उपलब्ध कराया। आज भी, ये सभी सेवाएं महंत वल्कबापू के संरक्षण में जारी हैं ।

आपा दाना का जन्म 1784 में वर्तमान जसदन तालुका के आनंदपर (भाड़ला) गाँव में हुआ था। आपा दाना जन्म से ही नेत्रहीन थे काठी क्षत्रिय जाति में आपा जादरा नाम के एक और संत हुए। सभी पीड़ित, अंधे, वंजिया, जिन्हें आपा जादरा हिंदवा पीर के रूप में माना जाता था। सभी पीड़ित उसके पास आते उसके आशीर्वाद लेकर लौट जाते।

एक बार आपा जादरा आनंदपर (भाड़ला) गांव में आये। आपा जादरा की प्रसिद्धि सुनकर, माँ आपा दाना को एक छड़ी के साथ आपा जादरा के पास लेकर जाती हैं। आपा जादरा युवा लड़के को छड़ी के साथ आता हुआ देखकर आश्चर्य होता है। आपा जादरा बैठे लोगोंसे सवाल पूछते हैं, लोगों ने कहा कि बेटा अंधा पैदा हुआ था। आपा जादराने युवक को बुलाया और उसकी आँखों की जाँच की “और कहते है कि अपनी आँखें न खोलने का नाटक ना करो आपको अब दुनिया में बहुत सारे लोगों को देखते करना होगा।” दाना ने अपनी आँखें खोलीं और पहली बार रोशनी दिखाई दि आपा जादरा ने दाना को आसमान में देखने के लिए कहा। उसने आसमानमें क्या देखा जिसने उन्हें वहाँ वैरागी बना दिया। उसने आपा जादरासे कहा, "मैं अब घर नहीं जाना चाहता, मैं आपके साथ जाना चाहता हूं।” गायों की देखभाल और सेवा  के लिए आपा दाना को गुरु की आज्ञा प्राप्त हुई, और उन्होंने जीवन भर गायों की सेवा की गुरु की आज्ञा के अनुसार, आपा दानाने गायों की सेवा के लिए सभी जिम्मेदारी संभाली।

आपा जादरा की समाधि के बाद पांचाल में सूखा पड़ा। आपा दाना गायों को जीवन देने के लिए गीर के पास तुलसीश्याम, गरमली, जेनगर इत्यादि स्थानों पर गए।
गरमलीमै आपा दानाने सदाव्रत शुरू किया। अकाल के दौरान, बहुत सारे लोग खाना खाने आते थे। भोजन देनेवाले नहीं,पकानेवाले थक जाते थे। आपा दानाने वहां गोल और चावल देना शुरू कर दिया। अकालमैं भूखे को खाना खिलाया।

एक बार की बात है,बापू गीर के पास गांव देवला पहुंचे काठियावाड़ की सूखाग्रस्त गायें यहाँ पहले ही उतर चुकी थीं, लेकिन गांव में पानी नहीं है। आपा दानाने गांव की सुखी नदी के पास एक पानी के कुएँ का निर्माण किया, और उसमें इतना पानी मिला कि कहते हैं, इस कुंडसे में नौ लाख गायोंने पानी पिया है। आज भी कुएँ में पानी है, दान बापू की गवाही रूप कुएँ आज भी देवला गाँवमें  है। पुरातत्व खाते द्वारा संरक्षित है।

गरमलीमै पटेल की एक बेटी है सिर से खून की गंध आ रही थी। आपा दानाने अपनी  जीभ से सिर को चाटा और ठीक किया। सोनी परिवार के एक घोड़े की कटी हुई जीभ गेहूं के आटे से चिपका कर पहले जैसा था वैसा ही किया।

दानबापू गधों को भावनगर से चावल लाते हुए गधोंको पाडरसिंगा गांव में, विसामन खुमान के खेतों में पानी पीने के लिए रुकते है। लेकिन खेतों के मजदूर वहां पानी पीने से मना कर देते हैं । वहां से आगे आपा दानाने गोरखा खुमान के खेतों में गधों को पानी पिलाया। उसके कुएं में ज्यादा पानी नहीं था मगर जैसे ही गधोंने गोरखा खुमान के कुएँ में पानी पिया तो कुँए में पानी ऊपर तक छलक गया। विसामन खुमान के खेत  के कुएँ में, जहाँ पानी कुएँ में ऊपर तक था, उस कुएँ का पानी पूरी तरह से खाली हो गया।

मांडव पर्वत में विसामन नाम के एक डाकू ने इस इलाके में आतंक मचा रखा था। दान बापू ने चमत्कार दिखाकर संत बना दिया। दान बापू ने  विसामन बापू के लिए पालियाद में एक आश्रम का निर्माण किया। जहां लोगों की सेवा करने के लिए कहाँ। यह जगह  दुनिया में लोकप्रिय है। उसकी जानकारी आगे लिखेंगे।

आपा दानाने  गायकवाड़ और भावनगर के शाही परिवारो को भी चमत्कारों से प्रभावित किया था। उन्होंने आपा दाना को गाँवों को उपहार के रूप में देने की इच्छा व्यक्त की। लेकिन आपा दानाने  उसे लेनेसे मना कर दिया।


राजगोर जाति के दो अनाथ बच्चे चलालामें दानबापू के पास बड़े हुए, और उनके युवा होने पर दान बापू ने उनको देवला के राजगोर जातिमें स्वीकार करने के लिए कहा तब जाति के नेताओं ने उसे जाति में शामिल करने से इनकार कर दिया। तो दान बापू ने अपनी पवित्रता साबित करने के लिए चलालामें गंगाजी को प्रकट किया। यह जगह आजभी यहाँ  हैं तस्वीर में देख सकते हैं। 

गायों, अंधे और विकलांगों की सेवा करते करते दान बापू सवंत 1878 और पोष वद 11 के दिन सुबह में 94 वर्ष की आयु में  स्वर्ग की और चले गए। दानबापू के शिष्य गिगाबापू हैं ।जो सत्ताधार मंदिर के महंत थे। हम उसकी जानकारी आगे लिखेंगे।

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