Ambaji Mandir - Atkot II अंबाजी मंदिर - आटकोट
Ambaji Temple - Atkot
अंबाजी मंदिर, मानव श्रम और प्रकृति की कृपा के शानदार दृश्यों का एक सुंदर स्थान है।
राजकोट से केवल 55 किलोमीटर और आटकोट से केवल 3 किमी दूर भादर और
जम्बुवती नदी के संगम पर आटकोट के राजा लाख फुलानी द्वारा स्थापित यह मंदिर स्थित है। भादर और जम्बुवती नदियों के संगम पर एक चेकडेम बनाया गया है।
इसीलिए मंदिर के दोनों किनारों की नदियोंमें पानी भरा हुआ
रहता है। मंदिर का विशाल परिसर ऊंचे पेड़ों से घिरा हुआ है। यहां तक कि एक गर्म गर्मी की दोपहर में, सूरज की किरण पृथ्वी पर ना गिरे ऐसी वनराई यहां बनाई गई है।
अंबाजी मंदिर के आस-पास 150से अधिक मोर हैं
यहां मोरों के प्रदर्शन को देखने का शानदार मौका है।
इस स्थान पर अम्बाजी, महाकाली और बहुचराजी मौजूद है। तो दूसरी तरफ शिव का मंदिर है। माताजी के मंदिर के चरणों के पास लाखा फुलानी सिर का पालिया है। ऐसा कहा जाता है कि कच्छ के तत्कालीन शाही परिवार के लाखा फुलानीने गिरनार के अंबाजी मंदिरसे उसकी लौ को लाया गया था और यहाँ स्थापित किया गया था। काठी क्षत्रिय लाखों फुलानी बहादुर और महान राजवंशों में से एक था और आटकोट गाँव उसे युद्ध में जीत लिया था। उन्होंने गाँव के चारों ओर आठ कोट का एक किला बनाया और फिर एक माँ अंबाजी मंदिर का निर्माण किया। मंदिर निर्माण के बाद वह गिरनार अंबाजी मंदिर में गए और माताजी को अपने गाँव आने का निमंत्रण दिया। माताजी ने कहा कि तुम घोड़े पर सवार हो जाओ मैं आपके पीछे
पीछे लौ रूप में आती हु। यदि तुम रास्तेमें पीछे मुड़ें तो मैं वही स्थापित हो जाएगा और यही हुआ अटकोट से 3 किमी दूर पीछे
मुड़ें और अंबाजी को वही स्थापित
हो गए। लाखों फुलानी माताजी के भक्त थे और सुबह जल्दी माताजी की एक प्रहर की पूजा करता था। लाखा फुलानी के कई दुश्मन थे। वह एक बहादुर था इसे सामने से नहीं हराया जा सकता था। इसलिए उनके दुश्मन मूलराज सोलंकी और रखायतने उसे धोखेसे मारना नक्की किया। लाखा सुबह-सुबह माताजी की पूजा में लिन था उस समय, मूलराज सोलंकी और रखायतने एक ही
तलवार के वार से लाखाका सिर काट दिया।
मंदिर के परिसर में सिर को दफनाया गया है। इसलिए परिसर के नीचे उसके सिर की एक कब्र है।
लेकिन उसका धड़
लड़ते-लड़ते मूलराज और उसके लोगोंके
पीछे पड़ गया।
उनके धड़ने मूलराज के लोगोंको अपनी तलवारसे काट दिया, और उसका धड़ रामा पटेल के खेतों पर गिर गया।
जहां लाखा फुलानी
का पालिया है। इसके बगल में कपूरा मेघवाल की पालिया है। सौराष्ट्र-कच्छ के काठी क्षत्रिय समाज के पुरुष आज भी आषाढ़ी बीज को यहाँ आते हैं मंदिरों और पालिया पर नारियल के ध्वज को बदलते हैंऔर इसकी बहादुरी का स्वागत करते हैं। दीपावली के बाद का नये सालमें भारवाड़ और रबारी जाति की महिलाएँ
उसे दूध से नहलाता है।
निवृत्त ममलतदार स्व। अर्जुनभाई हिरपरा ने इस मंदिर के उत्थान पर कड़ी मेहनत की है। वर्तमान में, उनके बेटे मनसुख और उनकी टीम यही कर रही है।
नवरात्रिमें यहाँ 9 दिनों के
अनुष्ठान होता है और आटकोट की लड़कियाँ यहाँ रास गरबा खेलने आती हैं। आस्था के इस स्थान पर जाने के बाद, अक्सर लोग चले जाते हैं। मंदिर के पुजारी त्रयंबकदादा दयालु है। परंपरागत रूप से पीढ़ी से पीढ़ी तक सेवा की है।
75साल की उम्र में भी, रोजाना 3 किलोमीटर की दूरी साइकिल पर तय करके आते हैं।
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