Tulsishyam in Gir Jungle II तुलसीश्याम - गीर जंगल

Tulsishyam in Gir Jungle

धारीसे तक़रीबन ४१ किलोमीटर और राजकोटसे १८० किलोमीटरकी दुरी पर गीरके जंगलमें तुलसीश्यामकी जगह जगप्रसिद्द है जंगलके मध्यमें ये एक ऐसी जगह है जहा रहने और भोजन दोनोंकी सहूलियत यहाँ उपलब्ध है. एक बात का ख्याल रखना जरुरी है के धारीसे तुलसीश्यामके मार्ग पर टीबरवा चेकपोस्ट है और तुलसीश्याम से उना के रोड पर जसाधार चेकपोस्ट है. ये दोनों तुलसीश्यामसे १० किलोमीटर की दुरी पर है. ये चेकपोस्ट सुबह ६ बजे खुलता है और रात को ८ बजे बंद होता है. आपको इससे पहले इस चेकपोस्टसे निकलना होगा. अगर आपको रात तुलसीश्याममें रुकना है तो आप चेकपोस्ट पर एंट्री करा सकते है.
में १९९४मे पहलीबार तुलसीश्याम गया था तब वहा एक मंदिर छोटीसे भोजनशाला और एक चाय की टपरी थी. जो तप्तोदक कुंडसे आगे थी. आज तो इस यात्राधाम का बहुत विकास हुआ है. भगवान श्रीकृष्ण यहाँ मंदिरमे बिराजमान है. सामने पर्वत पर माता रुक्ष्मणिका मंदिर है बहुत जियादा पगडण्डी नहीं है आरामसे जा सकते है. इस स्थान के आसपास बन्दरकी संख्या बहुत जियादा है जो आपको देखने मिलेंगी. और भाई कई जंगली प्राणी आपको आसपास देखने मिलेंगे. हम इस ब्लॉगमें आपसे अनुरोध करते है के किसीभी प्राणीको हानी ना पुहंचे इस का ख़ास ख्याल रखे धारीसे तुलसीश्याम के मार्गमें तुलसीश्याम से पहले १.५ किलोमीटरके अन्तरपे एक छोटासा पुल आता है. वहापे कोई बोर्ड नहीं हे मगर उस जगह का नाम भिमचास है. यहाँ भीमने अपने पाँवसे पानी निकाला था. २७ साल पहले जब हम यहाँ गए थे तब यहाँ भीमके पाँव के निशान देखनेको मिले थे. यह जगह पर कई लोगो की जान चली गई है इसलिए  यह जगह फारेस्टकी तरफसे बंदकी गई है तो ख़ास ख्याल रखे वहा जाना मना हे और जंगलमें किसीभी जगह बाहर निकलना मना हे. वहाँसे आधा किलोमीटर तुलसीश्याम की और आये तो फारेस्ट की ऑफिस है. वहासे एक मार्ग बाणेज की और जाता है. यह मार्ग सिर्फ फारेस्टके लोगो के लिए है. आम लोगोको यहाँसे जाना मना है. वहाँ से २०० मीटर की दुरी पर एक अद्भुत रह्श्यमई पहाड़ी हे. जो तुलसीश्यामसे पहले है. इस पहाड़ीने वज्ञानिकोभी अचम्भित किया है. इस जगह पर आप अपनी कार निचे रखे तो अपने आप पहाड़ीकी और खिंची चली जाती हे. इतनाही नहीं इस पहाड़ी के मार्ग पर आप जब पानी डाले तो वो भी ऊपर की और जाता है वो आप यहाँ देखंगे.
अब पुराणकी बात करे तो स्कन्द पुराणमें तुलसीश्याम के गरम पानी के कुंडका तत्पोदक कुंडका उल्लेख किया हुआ है.
राष्ट्रीय शायर ज़वेरचंद मेघानीने अपनी किताब सौराष्ट्रके खंडरोमें लिखा है के पहले यहाँ मिन्धो हर्मिया नामक पेड था. कोई भी पक्षी इस पेड पर बेठता तो वह मर जाता. ६०० साल पहले मिन्धा नेस का चारण अपनी भेस लेकर आ रहा था और इस जगह पर रात हो जाती है उसने देखा के पर्वत के ऊपरसे बजते बजाते वरघोडा आ रहा है तब वो तलवार पकड़कर वही खड़ा रहा. किसीने उसे ज्योत्रिमय स्वरुपमें आ के कहा के देवा रतिया तुम्हे यहाँ मेरी प्रतिमा मिलेंगी और उसकी यहाँ स्थापना करना. सुबह जब उसने वहा पेड के पतों को दूर किया तो वहासे प्रतिमा निकली. पूजा करनेके लिए उसके पास कंकू नहीं था तो उसने अपने पास सिंदूरसे प्रतिमा की पूजाकी (आजभी सिंदूरसे है पूजा होती है). प्रतिमाके स्नानके लिए कुंड प्रगट हुआ. इस कुंडका पानी बहुत गरम था. पहले तो यात्री इस कुंड में चावल डालके उबाल सकते थे. मगर एक शिकारीने इस कुंडमें मॉस पकाया तबसे इस कुंड की गर्मी कम हो गई.
कुंड और आसपास की जगहको साफ़ रखना हमारी जिम्मेदारी है तो ख़ास ख्याल रखे और कही पर भी कचरा न फेके और जंगलको नुक्सान न करे 

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