शिन्गोड़ा नदी के किनारे कनकाई माता II Kankai Mata Gir,
गीर के घनघोर वन के बीच गीर अभ्यारण्य में शिन्गोड़ा नदी के किनारे
सुविख्यात यात्राधाम कनकाई माता का मंदिर स्थित है.
कनकेश्वरी माता का महिमा पुराना है . यहाँ आसपास सहस्त्र जितनी जाती
के कुलदेव है . सौराष्ट्र के जो ख्यातनाम यात्राधाम है उसमे गीर वन के बीच में
कनकेश्वरी –कनकाई माता का विशेष महत्व है . तदुपरांत गीर के बीच में स्थित इस
तीर्थस्थल के पास सुंदर तथा अनन्य इतिहास है .
गुजरात प्रदेश के राजा वनराज चावड़ा के परिवार में कनाकसिंह चावड़ा
नामक राजा ने कनकावती नगर की स्थापना की थी . जो नगर के कुळदेवी कनकाई थी .
एक प्राचीन कथा के अनुसार मैत्रकवंश के कनकसेन नामक राजा ने इस नगर
की स्थापना की थी. यह स्थल १५०० वर्ष के समयांतर को सूचित करते है .
गीर के बीचमें नवनिर्माण किया हुआ भव्य मंदिर है . इस जगह का वहीवट
तथा व्यवस्था कनकेश्वरी टेम्पल ट्रस्ट द्वारा किया जाता है . इस स्थल पर चैत्र
महीने की नवरात्रि के दिन धामधूम से मनाई जाती है . इस स्थल पर बिजली के लिए
सौरपद्धति का इस्तेमाल किया जाता था
सायंकाल छः बजे के पश्चात इस स्थल के मुख्य द्वार बंध हो जाते है और
इस वनमें जाना लोगोके लिए वर्जित है . आये हुए प्रवासी की जाँच करने के बाद ही
प्रवेश दिया जाता है . यहाँ माताजी की पूजा तथा अर्चना के लिए निश्चित नितीनियम है
.
जूनागढ़ से विसावदर होकर कनकाई का अन्तर ६२ कि.मी. है . वर्षारुतु में
यह रास्ता बंध हो जाता है . कनकाई से बाणेज १८ कि.मी., अमरेली ७५ कि.मी.,
तुलसीश्याम २२ कि.मी., सासनगीर २५ कि.मी. है . राजकोटसे कनकाईकी दुरी १९० किलोमीटर
है.
कनकाई माता के दर्शन के लिए आये हुए प्रवासीओ को वन की सुरक्षा के
लिए गेट पास लेना पड़ता है और उसके नियमका पालन करना ज़रूरी है यहाँ जाने का रास्ता दुर्गम होनेकी बजहसे
यात्रियोंको ख्याल रखना जरुरी है
तुलसीश्याम से बस के रास्ते से जूनागढ़ की तरफ आते हुए गीर वन की
घनघोर जाडियो में कनकाई माता का मंदिर है
. यह मंदिर अत्यंत प्राचीन है वन्य पशु बहुत बार यहाँ दिखाई पड़ते है . यहाँ
धर्मशाला की भी सुविधा है . वर्षारुतु में कभी कभी वाहन व्यव्हार स्थगित किया जाता
है .
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें