पांडव स्थापित भीमनाथ महादेव - मोरबी II Bhimnath Mahdev - Morbi
सौराष्ट्र एक देवो
का प्रदेश है. यहाँ पर जगह जगह पर बहुत से मंदिर है और शिवालयोभी बहुत ज्यादा है.
राजकोटसे ५० किलोमीटर की दुरी पर – मोरबी हाईवे- लज्जई गाँव के चार रास्तेसे ३
किलोमीटर की दुरी पर १ किलोमीटर अन्दर जाना पड़ता है. यहाँ पर भीमनाथ महादेव
बिराजमान है, हरे भरे पेड़ो से पूरा संकुल मनमोहक लगता है और दिल को सुकून देनेवाली
जगह है.
एक समय पर ये जगह पूरी वीरान थी, यहाँ कुछ नहीं था, मगर सोहमदत बापूने अपने तपोबल और मेहनतसे इस स्थान को संवारा है. पांड्वोने अपना अज्ञात (गुप्त) समय यहाँ सौराष्ट्रमें निकाला है सौराष्ट्रमें गीरमें बानेज, भिमचास, पातालेश्वर, भावनगरके पास निष्कलंक महादेव, दिवमें गंगेश्वर महादेव और कही ऐसे स्थान है जहाँ पांडव आये थे उनके प्रमाण मिलते है. इस तरह भीमनाथ महादेव की स्थापना भी ५००० पूर्व हुई है. पांच पांडवमें भीम और सहदेव ५००० साल पहले यहाँ श्रापित जोगनीयो को मोक्ष दिया था और शिवलिंगकी स्थापना भीमने की थी इसलिए शिवलिंग का नाम भीमनाथ महदेव रखा है.
बहुत सालो तक यह जगह वीरान थी, कोई आता- जाता नहीं था. इस मंदिर के पास में बाँध का निर्माण होने से यह जगह बाँध के विस्तारमें आता है. सोहमदत बापू यहाँ सवंत २०४९में मंदिरके आसपास गड्डे थे उसे लेवल में किया और सब जगह वृशारोपन किया, अभी तो चोतरफ पेड ही पेड है पूरा संकुल पेड से हराभरा हुआ है, इस स्थान पर हर मास की शिवरात्रि और पूर्णिमा को जागरण और महापूजा होती है, सोहमदत बापू जब यहाँ पधारे तब ३ x 3 छोटीसे देरी थी, और इस जगह पर कोई आता जाता नहीं था इसलिए पूरा इलाका वीरान था और शिवलिंगकी पूजा भी नहीं होती थी, सोहमदत बापूने अन्न और जल का त्याग कर यहाँ भव्य शिवालय बनाने का संकल्प किया. शिव भक्तो के साथ से और बापू की तपस्या से ये संकल्प पूरा हुआ आज यहाँ पर भव्य मंदिर का निर्माण हुआ है.
सोहमदत बापू सवंत २०५३में अन्न और जल का त्याग किया था, त्याग के साथ किया हुआ संकल्प सवंत २०६१ में ८/५/२००५ पूरा हुआ और शिवरात्रि के दिन शिल्प शास्त्र के नियम अनुसार बापू के वरद हस्त पर मदिर के शिखर पर ध्वजा को चढाया गया और पूरा संकुल हर हर महादेव के नाद से गूंज उठा, सोहमदत बापू खुद दत पंथ के होने की बजह से यहाँ यज्ञ कुंड है, यहाँ पर यजमान अगर यज्ञ करना चाहे तो इसकी पूरी वयवस्था यहाँ पर उपलब्ध है.
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