देवभूमि उत्तरांचल की चारधाम यात्रा II Chardham Yatra in Uttarakhand II How and when people know about Kedarnath?



राजकोट से हमारे परिवार के ६ सदस्यों ने हरिद्वार में कथा का आयोजन किया था. कथा के आयोजक को हमने पोथी लिखाई थी. इसके चलते ही हमने हमारे परिवार के सदस्यों के घर खाना खाने का आयोजन किया था. वहा हमने हरिद्वार जाने का प्रस्ताव रखा. सब इस प्रस्ताव से सहमत हुए और हम सब मिलकर हरिद्वार जाने के लिए २२ सदस्य हो गए.
हमारी राजकोटसे  ही बुक थी और दुसरे सदस्यों की अमदावाद से बुक हुई. वापस आने की टिकिट भी बुक थी. ता.२१ मई २००४ का वह यादगार दिन था. राजकोट से हाल में जैसे उत्तरांचल एक्सप्रेस शुक्रवार को निकलती है वैसे ही २१ मई २००४ को सुबह ११:३० को निकले. परिवार के थोड़े सदस्य अमदावाद से अगले दिन  निकले. दूसरे दिन मतलब की शनिवार २२ मई २००४ के दिन हरिद्वार में ५ बजे के आसपास पहुचे. कनखल में चेतानंद नामक आश्रम आये क्योंकि वहा हमारा रहने का बंदोबस्त था. गंगा नदी तट से २००० मीटर की दूरी पर यह सुंदर आश्रम स्थित है. उसके अंदर छोटा सा मंदिर है तथा वहा बालको को विद्याभ्यास एकदम मुफ्त कराया जाता है. हम सबको पहले माले पर कमरे दिए गए.
ता.२३ मई २००४ और रविवार को पोथीयात्रा थी. सबने बड़े ही आनंद से उसमे भाग लिया. आनंद और उत्सव के साथ कथा प्रारंभ हुआ.सुबह ७ बजे से लेकर दोपहर १ बजे तक कथा का समय था. हमने पुरे आनंद से कथा का लाभ लिया और गंगाजी में भी खूब नहाने का आनंद लिया. गंगाजी में स्नान करने का तो आनंद ही अनन्य है.
चेतानंद आश्रम की सामने स्थित सुरतगिरी आश्रम में गंगाजी का घाट है और वहा स्नान करने में खूब आनंद आता है. कथा के चलते ही चारधाम यात्रा का हम सबने आयोजन किया. इसलिए वापस जाने की टिकिट को कैंसिल कराया,दूसरी टिकिट को खरीदा और बस में जाने का आयोजन किया. बस की क़िस्त ४०००० रूपये ९ दिन के तय हुए और यहाँ से हमारी चारधाम यात्रा का आरंभ हुआ.  
ता. ३० मई २००४ को चारधाम यात्रा करने के लिए हम निकले. वह हमारा सुखद और अविस्मरनीय आनंद था, जो श्रद्धा से भरपूर था. आज भी याद है जब हमने यमनोत्री की यात्रा का प्रारंभ किया.वहा जाते समय रुशिकेश के रजिस्ट्रेसन में बहूत समय था. सुबह ८ बजे से ११:३० बजे के आसपास का समय था.फिर हमने नरेन्द्रनगर के पास पहाड़ में स्थित मामा-भांजा होटल में खाना खाने के लिए बस को रोका, गुजराती खाना खाने के लिए तब वहा बहुत मुश्केली थी. राजमा वहा की खास सब्जी थी पर बहुत मजा आया. पास में एक सुंदर ज़रना बह रहा था. उसमे कोल्द्रिक्न्स रखने में आई थी जिससे वह तुरंत ठंडा हो जाए. जैसे जैसे बस ऊपर चढ़ने लगी वैसे वैसे सब परिवार के सदस्यों को वोमिटिंग की परेशानी होने लगी. इसलिए साथ में दवाई रखनी आवश्यक है. देर से निकले थे इसलिए बारकोट पहुचते पहुचते रात के ८ बज गए. रात को कोई भी वाहन चलने पर प्रतिबन्ध होने के कारण हमने पहले दिन का रात्रि-रोकाण किया.
ता.३१ मई २००४ को सुबह जल्दी उठकर करीबन ८ बजे के आसपास हम हनुमानचट्टी पहुचे और वहा से जानकीचट्टी तक जिप में पहुचे और वहा से यमनोत्री का ८ किलोमीटर का ट्रेकिंग था. परिवार के सदस्य अलग अलग जुट में बट गए. परिवार के थोड़े सदस्य ने खचर और डोली कर ली. हम ८ सदस्यों ने ट्रेकिंग आरम्भ की. प्रकृति से भरपूर नदी जरने, पहाड़ो के अनोखे संगम रमणीय थे. रास्ते में कालभैरव दादा के दर्शन कर के हम दोपहर १ बजे के आसपास यमनोत्री पहुचकर माताजी के दर्शन किए. बाजु में ही गरम पड़ी का कुंड था उसमे हमने हाथ और पैर का स्पर्श कराया. हमारी पूरी थकान जैसे गायब ही हो गई. फिर वापस आने की तैयारी की. हम शाम  ७ बजे के आसपास नीचे आये और फिर हम  जानकीचट्टी से हनुमानचट्टी गए. रात को एक होटल रखने में आई, जो लकड़ी की बनी हुई थी और होटल के पास से ही यमुना का प्रवाह बह रहा था और उसका आवाज भयंकर था.
१ जून को यमनोत्री के दर्शन करके हम वापस लौटे और रास्ते में सबको यमुनाजी में स्नान करने का मन हुआ, इसलिए हमने बस रोकी और यमुनाजी में बहुत देर तक स्नान किया. हमने रास्ते में टिहरी डैम देखा और टिहरी में हमने दोपहर का भोजन किया और वहा से हम उत्तरकाशी होकर हम जाला गाँव पहुचे, वहा हमने रात को ठहरने का फेसला किया. वहा हमने पहेली बार खाना बनाया. नास्ता साथ में होने से हमने सेव और टमाटर का शाक बनाया और साथ में चपाटी बनाई. फिर हमने खाना खाया और फिर वही रुक गए.


ता. २ जून को जल्दी उठकर निकल गए और गंगोत्री पहुच गए और वहा दर्शन किए उसके बाद पास में बह रही भागीरथी नदी में स्नान किया. बर्फ पहाड़ो से छाए हुए यह प्रदेश को देखकर बड़ा आनंद आया. सूर्यकुंड देखा. गौमुख वहा से १८ किलोमीटर की दुरी पर है. दोपहर १२ बजे के आसपास हम वापस आये और उत्तरकाशी पहुचे तथा आसपास अच्छी-सी जगह देखकर वही रात्रि-रोकाण के लिए ठहर गए.
ता. ३ जून को हम उतरकाशी से निकले और केदारनाथ की तरफ हमने अपनी यात्रा को आगे बढाया. रुद्रप्रयाग, अगत्स्यमुनी और सोनप्रयाग के बाद हम गौरीकुंड पहुचे. हमने खाना रुद्रप्रयाग में खाया. हम ७ बजे के आसपास गौरीकुंड पहुचे और वहा वातावरण एकदम मनमोहक था. पास मधुर आवाज करती हुई मन्दाकिनी नदी और उसके किनारे पर गौरीकुंड. गौरीकुंड का नाम वहा गरम पानी के कुंड है उस पर से रखा गया है. ( २०१३ में आई हुई विपत्ति के बाद गौरीकुंड में गरम पानी के कुंड लुप्त हो चुके है और गौरीकुंड पूरी तरह से बदल गया है. अब वहा तक बस भी नहीं जा शकती, बस सोनप्रयाग तक ही जाती है और वहा से गौरीकुंड जीप में जाना पड़ता है. पहेले रास्ते जो रामवाडा गाँव था वह हाल में तो वहा है ही नहीं. सामने के पहाड़ पर से दूसरा रास्ता निकाला है. ) हम वही पर एक होटल में ठहेरे और खाने में बैगन का भरता और मेगी खाई.
ता. ४ जून की सुबह हमने केदारनाथ की ट्रेकिंग का आरंभ किया. तकरीबन ७ बजे के आसपास हमने होटल में आलू पराठे का नास्ता किया. यमनोत्री की थकावट के कारण सभी ने खचर और डोली कर ली थी. हम चार से पांच सदस्य ने ट्रेकिंग की. सुबह के समय थोडी गरमी होने के कारण जो खचर में थे उनको प्लास्टिक के रेनकोट दे दिए. दोपहर १२ बजे के आसपास हम रामवाडा पहुचे और चाय पी. हमने वापस सफ़र की शरुआत की. हम केदारनाथ से तीन किलोमीटर की दूरी पर थे कि उतने में ही वर्षा शरु हो गई. हम किसी और जगह पर पहुचे उससे पहेले ही हम बारिश में भीग गए. स्वेटर पहना था इसलिए बदन पर वजन थोडा बढ़ गया, ठंडी भी बहुत थी. उसके कारण हाथ कापने लगे और थोड़ी देर बाद हाथ जम गए. इसलिए हम दोनों चाय की होटल बैठे और दो चाय मंगाई. गरम चाय का प्याला हाथ में उठाने पर भी कुछ असर नहीं हुआ क्योंकि हाथ ही इतने ठंडे हो गए थे. अब केदारनाथ १ किलोमीटर दूरी पर था. थोड़ी राहत होने के बाद हम आगे बढे. उसी वक्त हमें हमारे दूसरे परिवार के सदस्य मिले उसने कहा की यहाँ रहना मुन्किन नहीं है क्योंकि यहाँ बहुत ठंडी है. आप भी दर्शन कर के गौरीकुंड आ जाना. हमने कहा की दर्शन हो जाए तो आ जाएँगे अगर नहीं आये तो चिंता मत करना हम दर्शन कर के सुबह को आ जाएँगे. हमने उन सब के पास से रेनकोट ले लिए.




आज भी हम दोनों को याद है वह दोपहर घड़ी में ३ बज रहे थे. शाम आरती के लिए शिवलिंग के  श्रृंगार समय हो गया था. द्वार बंद होने लगे. हम दोनों पहुचे पर केदारनाथ द्वार बंध हो रहे थे. मैंने द्वार पर हाथ रखा और हम दोनों अन्दर चले गए. मजे की बात वह थी की हमारे पहले जो परिवार के सदस्य पहुचे थे उसको दर्शन के लिए कतार में खड़ा रहना पड़ा था. महादेवजी की कृपा से पुरे मंदिर में मै ओर मेरी पत्नी और मंदिर के पुजारी के अलावा और कोई नहीं था. हमारे अंदर जाने के बाद द्वार बंध हो गए. पुजारी साथ में थे हमने शिवलिंग की पूजा उसके पास ही कराई थी. पुरे मंदिर हम दोनों ३० मिनिट तक अकेले थे और दर्शन किए. हमारे पढनेवाले दोस्तों को कहना चाहता हु की मुझे केदारनाथ दादा के दर्शन तीन बार हुए है.२००४ में , २००७ में और २०१६ में. सोमनाथ मंदिर की तरह अब केदारनाथ मंदिर में प्रतिमा को स्पर्श करने पर प्रतिबन्ध है, पर हम २ बार गए तब हम पूजा कर शकते थे परन्तु शिवलिंग पर लोगो ने घी अर्पण किया था उसके कारण शिवलिंग एकदम चिकना हो गया था. हम पूजा कर के बहार आए. शाम के चार बज गए थे. कोई भी परिवारके  सदस्य नहीं थे. इसलिए हमने भी खचर करने का तय किया. रु.७०० में २ खचर किये  ( हाल में खचर में आने जाने का खर्च  रु.२१०० है. ) और रात को लगभग आठ बजे गौरीकुंड पहुचे.
यह दर्शन मेरी जिंदगी के आलौकिक दर्शन थे. भगवान साथ में होने का एहसास हुआ जब मंदिर द्वार बंध हो रहे थे तब भी हम अंदर चले गए. भगवान् भोलेनाथ ने दर्शन दिए और हमें पूजा का भी मोका मिला. रात को गौरीकुंड के कुंड में स्नान किया और रात को भी हम वही रुक गए.


ता.५ जून हम सब केदारनाथ से बद्रीनाथ की यात्रा का आरंभ करे उससे पहेले हम सब चोपता पहुचे. वहा दोपहर के खाने का आरंभ हुआ था और बरफ के टूकडे वर्षा होने लगी. चोपता को मिनी स्विट्ज़रलैंड भी कहा जाता था. वहा निकलने के बाद हम जोशीमठ पहुचे जहा आदि शंकराचार्यजी का मठ है और यहाँ से ही घांघरिया होकर फ्लावर वेली और हेमकुंड साहेब का  रास्ता है. रात को हमने जोशीमठ रुकने का फेसला किया. जोशीमठ से बद्रीनाथ जाने की लिए वन-वे था इसलिए थोड़े वाहन गुजरने के बाद ही दूसरे वाहन गुजर शकते है. रास्ते एक जगह पर बहुत ट्राफिक हो गया था क्योंकि रास्ते में एक बस का  गैर बॉक्स गिर गया था. बस दो घंटे तक अटकी पड़ी थी. २ घंटे की हेरानगति को सहना पड़ा और शाम ५ बजे हम बद्रीनाथ पहुचे. यहाँ खाना अच्छा मिलने की व्यवस्था है.
ता. ६ जून को हमने बद्रीनाथ के दर्शन के निकले, वहा ३००० लोग दर्शन के लिए कतार में खड़े थे. बद्रीनाथ भगवन के दर्शन हमें दो घंटे के बाद हुए. गरम पानी के कुंड यहाँ भी है और पास में अलखनंदा नदी का अविरत प्रवाह हमेशा बहता रहता है. बद्रीनाथ के माणा गाँव के पास जहा वेदरुषी व्यास ने पुराण लिखे थे , वहा गणेश गुफा स्थित है और सरस्वती नदी भी स्थित है, और भीमपूल है. पांड्वो यहाँ से ही स्वर्ग में गए है एसा मानने में आता है.
इस तरह हमने चारधाम सुखद रीत से संपन्न किए. ता.७ जून को हम हरिद्वार वापस आये वहा से दिल्ली और वहा से फिर राजकोट गए.              

टिप्पणियाँ

  1. हर हिन्दू को उत्तराखंड की चारधाम यात्रा एक बार अपनी जिंदगी में जरूर करनी चाहिए क्योकि यही मोक्ष का द्वार है। इस यात्रा को करने के बाद इंसान मोक्ष को प्राप्त होता है।

    जवाब देंहटाएं
  2. जय बद्री केदार
    उत्तराखंड सच में देवताओं का घर है यहाँ पग पग पर भगवान का वास है. मैंने भी चारधाम यात्रा बहुत बार की है गंगा,
    यमुना, अलकनंदा, भागीरथी जैसी विशाल नदियाँ, नंदा देवी, सतोपंथ, त्रिशूल जैसे ऊँचे ऊँचे पर्वतो के देखने का अलग ही अहसास होता है.

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

१०० सालकी आयु के काश्मीरी बापू का आश्रम – जूनागढ़ II Kashmiri Bapu Ashram - Junagadh

Dan Gigev Ashram - Chalala II संत दाना भगत - चलाला

गीरनार की गोद में भवनाथ महादेव - जूनागढ़ II Bhavnath Mahadev - Junagadh