महान संत सद्गुरु श्री गोपालानन्दजीने बैर के पेड के सभी कांटे गिरा दिए II Gopalanand swami - Swaminaryan Mandir Rajkot Bordi Itihas
मुंबई के गवर्नर सर माल्कामने
अपने राजदूत को भगवान सर्वोपरी श्री स्वामीनारायण के पास गढ़पुर भेजा! राजदूतने
भगवानसे प्राथनाकी और कहा के वर्णीराज स्वामी अगर आपकी आज्ञा हो तो गवर्नर साहेब को
आपकी दर्शन की इच्छा है तो आपके दर्शनके के लिए यहाँ गढ़पुर आए अन्यथा आप राजकोट
पधारे और हम सबको धन्य करे! आप स्वंत्रत्र हो इस्सलिये आप जो फैसला करे.
भगवान् श्री स्वामीनारायण
कहा: हे राजदूत! आपके गवर्नर साहेब का मंगल हो आपके गवर्नरने हमारे साधूओका दुष्ट
लोगोसे रक्षण किया है. फिर राजदूत को भोजन करवाया और भगवानने कहा आप यहाँ से
अभी राजकोट जाओ और गवर्नरको हमारे आगमनका शुभ सन्देश दो. हम अभी वहां आने के लिए रवाना
हो रहे है और भगवान स्वामीनारायण अपने संतो,पार्षदों और ब्रहमचारीके साथ राजकोटके
लिए गढ़पुर से निकले.
विक्रम सावंत १८६६ फागुन सूद-५
का वो दिन था जब महाराज राजकोट पधारे, राजकोटमें गवर्नर भगवान श्रीहरि का भव्य
स्वागत किया. भगवानके मुखकमल को देखकर गवर्नरकी आँखोंमें हर्षके आंसू आ गए.
गवर्नरने अपना सिर भगवान श्रीहरिके चरणमें रख दिया और नमस्कार किया. भगवान श्री
स्वामीनारायणने उनके इस भाव और प्रेम को देखा तो अपने हस्तसे लिखी हुई शिक्षापत्री
भेंट दी. जिसके आज भी बोद्लियन लाइब्रेरी
(ऑक्सफ़ोर्ड) लंदनमें उसके दर्शन होते है.
राजकोटसे निकलते समय भगवान श्रीहरि
एक पेडके निचे सभामें संतो, पार्षदों, हरिभक्तो बिराजमान थे सभा के बाद जब वहांसे निकले तब भगवान श्री हरि के
महान संत सद्गुरु श्री गोपालानन्दजी की पाघमें उस बैरके पेड का कांटा चुभ गया. संत
श्री गोपालानन्दजी ने पेड की और देखा और कहा के “तेरे निचे सवयंम पूर्णपुरषोत्तम नारायण
पधारे है फिर भी तुमने अपना डंखीला सवभावका त्याग न किया. इतना कहते उस बैरके पेड
के सभी कांटे पेडसे निचे गिर गए. आजभी २०० साल के बाद भी इस बैरके पेडमें एक भी
कांटे नहीं और राजकोट भूपेंद्र रोड पर जो स्वामीनारायण मंदिर है वहां दर्शन होते है.
भक्तो आज भी इस बैरके पेड की परिक्रमा करते है.
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