संदेश

गीरनार की गोद में भवनाथ महादेव - जूनागढ़ II Bhavnath Mahadev - Junagadh

चित्र
संसार के दुःख को दूर करनेवाले , देवो के देव , गंगाजी को मस्तक पर ग्रहण करनेवाले नंदिधारी , त्रिशूलधारी , जन्म तथा मरण आदि के रोग को दूर करनेवाले सदाशिव परमेश्वर को अगर याद किया जाए तो वह है आशुतोष भवनाथ महादेव. भारत में देवी-देवताओ के असंख्य मंदिर है. यह मंदिरोंमें अनेक   देवताओ की प्रतिमा हमें देखने को मिलाती है. परन्तु शिवमंदिर में शिव स्थापना के स्थान पर “ शिवलिंग ” की ही स्थापना होती है. शिवलिंग समस्त ब्रह्मांड का प्रतीक है. समस्त ब्रह्मांड का समावेश शिवलिंग में होने की कल्पना हिन्दू धर्म में की गई है. गीरनार की गोद में पुराणप्रसिद्ध भगवन भवनाथ महादेव का मंदिर स्थित है. जूनागढ़ की तलेटी में दामोदर कुंड से आगे चलने पर गीरनार दिखाई पड़ता है और सुवर्णरेखा से उतरने पर रास्ते की बाई तरफ श्री दूधेश्वर महादेव की जगह स्थित है. वहा से आगे वस्त्रापथेश्वर महादेव का मंदिर और उसके आगे सामने की तरफ भवनाथ महादेव का मंदिर स्थित है. जूनागढ़ शहरमें गीरनार नामक प्राचीन पर्वत है , कहते है के ये हिमालयसे भी पुराना पर्वत है , पुरानोमें इसका नाम रेवतके नामसे है. गीरनारको   नव नाथ और ६४ देवीओ का स्थान कह

टपकेश्वर महादेव - गुफा जंगलमें II Tapkeshwar Caves in Gir Jungle

चित्र
राजकोटसे करीबन २०० किलोमीटर दूर - धारी और जामवाला हो के और - दूसरा रास्ता है जूनागढ़ से सासन हो के और उना की औरसे करीबन २५ किलोमीटर के दुरी पर पहाड़ी इलाकोंमें टपकेश्वर महादेव बिराजमान है उनासे गिरगढ़डा और वहा से ३ किलोमीटर दूर बाई और रास्ता जंगलकी और जाता है बारिशके मौसममें आपको सुंदर नज़ारा देखनेको मिलता है मंदिर तक वाहन नहीं जा सकते है मंदिरसे १ किलोमीटरकी दुरी पर वाहन रखना पड़ता है और वहा से पैदल जाना होता है छोटी पहाड़ी पर आते ही आसपासका की प्रकृति का नज़ारा देखने को मिलता है   पहाड़ी पर ऐसा अदभुत नज़ारा देख कर ऐसा लगता है यही बेठे रहे कही पर भी ना जाये पहाड़ी पर वनविभाग के द्वारा चोकी बनाई गए है जहा से वो आते जाते लोगोपे नज़र रख सके और ज़रूरत पड़ने पर उनकी सहायताभी कर सके क्योंकि यह जंगल का एरिया यहाँ पर जंगली जानवर अक्सर पाए जाते है फारेस्ट चोकी से निचे उतरते ही निचे टपकेश्वर की गुफा दिखने लगती है ऊपर से देखो तो ज़मीन और पैड है दिखाई देते है मगर पास जा कर देखे तो जमीन के निचे बहुत ही अच्छी गुफा का निर्माण किया हुआ है निचे जाने के लिए २५ से ३० सीडिया बनाई गई है एक और महंतजी के लिए रहने के

500 साल पुराना गोपीनाथजी महाराज मंदिर नदीमेंसे निकला II 500 years old Gopinathji Temple found in river

चित्र
ओर्रिस्सा के नयागढ़में पदमावती नदीके किनारे रहते लोग आश्चर्यचकित हो गए जब उनहोने देखाकी नदी के अन्दर ५०० साल पुराना भगवान् विष्णु का मंदिर अचानक बहार दिखने लगा इंडियन नेशनल आर्ट एंड कल्चर हेरिटेज के पुरातत्व विभागने बताया के यह मंदिर उसने खोजा है. इस मंदिर बनावट देखकर लगता है की यह मंदिर १५ और १६ सदी के आसपास बनाया गया है. इस मंदिरमें भगवान गोपीनाथ (भगवान विष्णु) की प्रतिमा बिराजमान है. जिसको गाँवके लोग अपने साथ ले गए थे. इंडियन नेशनल आर्ट एंड कल्चर हेरिटेज के पुरातत्व विभागने बताया ओर्रिस्सा के नयागढ़में स्थित बैधनाथके पास महानदीकी दूसरी शाखा पदमावती नदीमें मंदिर का उपरी हिस्सा स्पस्ट दिखाई दे रहा था. अर्कियोलोगिस्ट दीपक कुमारने कहा के उसकी टीम को ये जानकारी थी जिस जगह पदमावती नदी हे वहा पर पहले गाँव बसा हुआ था और उसमे बहुतसे मंदिर थे उसने बताया के नदीमें जो मंदिर देखनेको मिला उसकी ऊंचाई ६० फीट है मंदिर को देखर लगता है की ये १५ वी या १६ वी शताब्दीमें बनाया गया है. इस पुराने गाँवमें कई मंदिर थे नदी का पानी कम होने की बजह से यह मंदिर दिखने लगा और भी कई मंदिर इस गाँवमें होने की सम्

पांडव स्थापित भीमनाथ महादेव - मोरबी II Bhimnath Mahdev - Morbi

चित्र
सौराष्ट्र एक देवो का प्रदेश है. यहाँ पर जगह जगह पर बहुत से मंदिर है और शिवालयोभी बहुत ज्यादा है. राजकोटसे ५० किलोमीटर की दुरी पर – मोरबी हाईवे- लज्जई गाँव के चार रास्तेसे ३ किलोमीटर की दुरी पर १ किलोमीटर अन्दर जाना पड़ता है. यहाँ पर भीमनाथ महादेव बिराजमान है, हरे भरे पेड़ो से पूरा संकुल मनमोहक लगता है और दिल को सुकून देनेवाली जगह है. एक समय पर ये जगह पूरी वीरान थी, यहाँ कुछ नहीं था, मगर सोहमदत बापूने अपने तपोबल और मेहनतसे इस स्थान को संवारा है. पांड्वोने अपना अज्ञात (गुप्त) समय यहाँ सौराष्ट्रमें निकाला है सौराष्ट्रमें गीरमें बानेज, भिमचास, पातालेश्वर, भावनगरके पास निष्कलंक महादेव, दिवमें गंगेश्वर महादेव और कही ऐसे स्थान है जहाँ पांडव आये थे उनके प्रमाण मिलते है. इस तरह भीमनाथ महादेव की स्थापना भी ५००० पूर्व हुई है. पांच पांडवमें भीम और सहदेव ५००० साल पहले यहाँ श्रापित जोगनीयो को मोक्ष दिया था और शिवलिंगकी स्थापना भीमने की थी इसलिए शिवलिंग का नाम भीमनाथ महदेव रखा है.  बहुत सालो तक यह जगह वीरान थी, कोई आता- जाता नहीं था. इस मंदिर के पास में बाँध का निर्माण होने से यह जगह बाँध के विस्ता

१६०० सालसे भी पुराना गलधरा खोडियार मंदिर II Galdhara Khodiyar Temple - Dhari

चित्र
सौराष्ट्र को संतो और शूरा की जमीन के रूपमें जाना जाता है . उसमे अनेक सतीभी शामिल है . उसमे श्री खोडियार माताजी का स्थान सबसे ऊपर है . खोडियार माताजी के कई भक्त है जो देश और विदेश में रहते है . इस कलियुगमें हनुमानजी और खोडियार माताजी को प्रगट देव माना जाता है . दोनों देव का समरण करते ही भक्तो की पीड़ा हर लेते है . सौराष्ट्रमें खोडियार माताजी के कही मंदिर है मगर खोडियार माताजी के सौराष्ट्रमें मुख्य ४ स्थान है . इसमें पहला स्थान है  पुराना गलधरा खोडियार मंदिर . अमरेली जिले के धारी गाँवसे ५ किलोमीटरकी दुरी पर गलधरामें खोडियार माताजी मंदिर शेत्रुंजी नदी के किनारे पर स्थित है . नदी पर सौराष्ट्र का सबसे गहरा बाँध बनाया गया है. उसका नाम भी माताजी के नाम पर रखा गया है   खोडियार बांध. माताजी के स्थान के पास मनोरम्य स्थान की सुंदरतामें और वृद्धि करती है यहाँ की चट्टानें. नदी के अन्दर बहुत गहरा पानी का धरा है. धरा के बाजूमे बहुत बड़ी चट्टानें हे   इसके पासमें रायन के पेड के नीचे माताजी बिराजमान है यहाँ थोड़े साल पहले बड़ा मंदिर बनाया गया है  रहने के लिए यहाँ सभी इन्तेजाम है. पासमे गुजर

फतेपुरमें ठेबी नदीके किनारे भोजा भगत का आश्रम II Bhojaldham - Fatehpur (Amreli) - Gujarat

चित्र
भोजा भगत आश्रम राजकोटसे १२० किलोमीटर, अहमदाबादसे २५० किलोमीटर दुरी पर भोजा भगत आश्रम फतेपुरमें स्थित है. भोजा भगत के नाम से कोई अनजान नहीं है। अमरेली के लापलिया गाँव से पाँच किमी, फतेहपुर गाँव में भोजा भगत का एक आश्रम है। जलारामबापा को तो सब जानते ही हे , भोजाबापा जलारामबापा के गुरुदेव थे।   भोजा भगत का जन्म वैशाखी पूर्णिमा को ७-५-१७८५ को जेतपुर के पास देवकीगालोल गाँव में हुआ था। ‘चाबखा’ नाम के मौलिक काव्यकी उसने रचना की थी इसलिए उसे गुजरात के कबीर के रुपमे लोग जानते थे. उनके दर्शन करने के लिए बहुतसे लोग आते थे. भोजा भगतने अपना आश्रम अमरेली के पास फतेपुर गाँवमें अपना आश्रम बनाया था. उस वक्त के अमरेलीके दीवान विठलरावजी उनके शिष्य थे. उसके संबोधनमें गुजराती भाषामें गाये हुए पद ‘चाबखा’ नामसे प्रचलित थे उसमे ‘प्राणिया भजी लेने किरतार’ और ‘कछुआ और कछुइ’ के भजन गांधीजी को बहुत पसंद थे. संतभूमि सौराष्ट्र (गुजरात) में जेतपुरके पास देवकीगालोल के एक छोटेसे गाँवमें भोले ह्रदय के कृषणभक्त करशनभाई के घरमे भोजा भगत का जन्म सने १७८५ में हुआ था. उनके माता का नाम गंगाबाई था. भोजा भगत जन्म से लेकर १२ सा

देवभूमि उत्तरांचल की चारधाम यात्रा II Chardham Yatra in Uttarakhand II How and when people know about Kedarnath?

चित्र
राजकोट से हमारे परिवार के ६ सदस्यों ने हरिद्वार में कथा का आयोजन किया था. कथा के आयोजक को हमने पोथी लिखाई थी. इसके चलते ही हमने हमारे परिवार के सदस्यों के घर खाना खाने का आयोजन किया था. वहा हमने हरिद्वार जाने का प्रस्ताव रखा. सब इस प्रस्ताव से सहमत हुए और हम सब मिलकर हरिद्वार जाने के लिए २२ सदस्य हो गए. हमारी राजकोटसे  ही बुक थी और दुसरे सदस्यों की अमदावाद से बुक हुई. वापस आने की टिकिट भी बुक थी. ता.२१ मई २००४ का वह यादगार दिन था. राजकोट से हाल में जैसे उत्तरांचल एक्सप्रेस शुक्रवार को निकलती है वैसे ही २१ मई २००४ को सुबह ११:३० को निकले. परिवार के थोड़े सदस्य अमदावाद से अगले दिन  निकले. दूसरे दिन मतलब की शनिवार २२ मई २००४ के दिन हरिद्वार में ५ बजे के आसपास पहुचे. कनखल में चेतानंद नामक आश्रम आये क्योंकि वहा हमारा रहने का बंदोबस्त था. गंगा नदी तट से २००० मीटर की दूरी पर यह सुंदर आश्रम स्थित है. उसके अंदर छोटा सा मंदिर है तथा वहा बालको को विद्याभ्यास एकदम मुफ्त कराया जाता है. हम सबको पहले माले पर कमरे दिए गए. ता.२३ मई २००४ और रविवार को पोथीयात्रा थी. सबने बड़े ही आनंद से उसमे भाग